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मंगलवार, 3 जनवरी 2017

भाव और अभाव

अभाव  अर्थात   कमी ।  भाव  अर्थात  भावनाएं  या कोई बाज़ार  भाव।  करीब 1 माह पूर्व  अख़बार  में  खबर छपी  थी। छत्तीसगढ़ में किसानों ने अपने 70 ट्रक टमाटर रोड पर फेंक दिए क्योंकि विमुद्रीकरण के कारण उनकी उपज कोई व्यापारी खरीद ही नहीं  पा रहा है या फिर कम दाम पर बेचना पड़ रहा है ।जिससे किसानों को मुनाफा नहीं हो पा रहा है । सड़कों पर कुछ टमाटर  जानवरों ने खा लिए बाकी सब वाहनों के नीचे आकर पिचल गए ।

 एक दिन शाम को खबर आई थी कि विमुद्रीकरण के दौरान अलीगढ़ में एक गरीब मां अपने बच्चों के लिए भोजन नहीं ला पाई कई दिनों से भूखे बच्चे मां से खाना मांग रहे थे तो उस महिला ने खुद को आग लगाकर जला लिया उसे इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया । इन दोनों घटनाओं को एक साथ देखा जाए तो एक तरफ हजारों टन टमाटरों की बर्बादी हो रही है और दूसरी तरफ एक गरीब परिवार के पास रोटी भी खाने के लिए नहीं है।  इन दोनों घटनाओं में एक महत्वपूर्ण बात निकल कर  आती  है कि क्या विमुद्रीकरण देश के लिए इतना ज़रूरी  है जो किसी को आत्महत्या करने पर मजबूर कर दे । अगर है तो क्या  इसके  दुष्परिणामों पर पहले गौर नहीं किया जा सकता है । अगर ये टमाटर भूखों को दिए जाते तो शायद छोटे ग़रीब   बच्चे भूखे नहीं सोते या भूख के कारण उनकी मां को आग लगाने पर विवश न  होना पड़ता ।

एक   ओर  किसान  को उसके पैदा  किये  टमाटर की लागत नहीं मिल रही दूसरी ओर पूंजीपति अपनी आलीशान दुकानों के जरिए देशभर में महंगे दाम पर टमाटर बेच रहे हैं । अब सवाल यह है कि किसान का टमाटर 1रुपये प्रति  किलो और पूजीपति  का टमाटर 40 रुपये  प्रति किलो क्यों बिक रहा है ?

 पूंजीपतियों में एकता है और वे सरकार से अपने लिए नियम- कानून बनवा लेते हैं । वहीं किसान एकता के अभाव में बस अपनी ही उगाई फसल पर भड़ास निकालता है । और उसे समाज और सरकार को दिखाने के लिए सड़क पर फैला देता है । किसानों में एकता होती तो वे अपने टमाटरों  का सॉस बनाकर ऊंचे दामों पर बेच सकते थे या किसी गरीबों की मदद करने वाली संस्था को दान  कर सकते थे।

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